*International Gita Mahotsav Kurukshetra 07-23 Dec.
Gita Quiz में आज का प्रश्न है
महाभारत युद्ध में कौरवों और पांडवों की सेना रणक्षेत्र में एक दूसरे के सामने खडी थी रणक्षेत्र में पांडवों की सेना का मुख किस दिशा की ओर था ?
प्रश्न से संबधित जानकारी पढें और दिये गये लिंक पर click करें और जवाब दें
संजय धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का हाल सुनाता है
संजय पांडवों के व्यूह एवं युद्धभूमि में पांडव सेना के आगे बढ़ने का वर्णन करते हुए कहते हैं कि- ' भीम उस व्यूह में सबसे आगे है उस वज्र व्यूह का मुख सब ओर से खुला है।'
दोनो सेनाओं की स्थिति तथा कौरव सेना का अभियान धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! सूर्योदय के समय किस पक्ष के योद्धा युद्ध की इच्छा से अधिक हर्ष का अनुभव करते हुए जान पड़ते थे? भीष्म के नेतृत्व में निकट आये हुए मेरे कौरव सैनिक अथवा भीमसेन की अध्यक्षता में आने वाले पाण्डव सैनिक! उस समय कौन अधिक प्रसन्न थे। चन्द्रमा, सूर्य और वायु किनके प्रतिकूल थे? किनकी सेना की ओर देखकर हिंसक जंतु भयंकर शब्द करते थे? ये सब बातें तुम मुझे ठीक-ठीक बताओ।
संजय बोले- दोनो ओर की सेनाएं समान रूप से आगे बढ़ रही थी। दोनों ओर के व्यूह में खड़े हुए सैनिक हर्ष से उल्लसित थे। दोनों ही सेनाएं वनश्रेणियों के समान आश्चर्यरूप प्रतीत होती थीं और दोनों ही हाथी, रथ एवं घोड़ों से भरी हुई थीं। दोनों ओर की सेनाएं विशाल, भयंकर और दु:सह थीं, मानो विधाता ने दोनों सेनाओं को स्वर्ग की प्राप्ति के लिये ही रचा था। दोनों में ही सत्पुरुष भरे हुए थे। आपके पुत्र कौरवों का मुख पश्चिम दिशा की ओर था और कुंती के पुत्र उनसे युद्ध करने के लिये पूर्वाभिमुख खड़े थे। कौरव सेना दैत्यराज की सेना के समान जान पड़ती थी और पाण्डव-वाहिनी देवराज इन्द्र की सेना के तुल्य प्रतीत होती थी। पांडव सेना के पीछे की ओर से हवा चल रही थी और आपके पुत्रों की ओर देखकर हिसंक जंतु बोल रहे थे। आपके पुत्र की सेना में जो हाथी थे, वे पाण्डव पक्ष के गजराजों के मदों की तीव्र गन्ध नहीं सहन कर पाते थे। दुर्योधन कमल के समान कांति वाले मदस्त्रावी गजराज पर बैठकर कौरव सेना के मध्यभाग में खड़ा था। उसके हाथी पर सोने का हौदा कसा हुआ था और पीठ पर सोने की जाली बिछी हुई थी। उस समय बंदी ओर मागधजन उसकी स्तुति कर रहे थे। उसके मस्तक पर चन्द्रमा के समान कांतिमान श्वेत छत्र तना हुआ था ओर कण्ठ में सोने की माला सुशोभित हो रही थी। हमारी सम्पूर्ण सेना के आगे पितामह भीष्म थे। वे श्वेत शैल के समान प्रकाशित होने वाले श्वेत घोड़ों और श्वेत ध्वज से सुशोभित हो रहे थे। महान् धनुर्धर और महामना कृपाचार्य, शक, किरात, यवन तथा पल्लव सैनिकों के साथ कौरवसेना के बांये भाग में होकर चल रहे थे। या तो हम अर्जुन पर विजय प्राप्त करेंगे अथवा हमारी मृत्यु हो जायगी’ ऐसी प्रतिज्ञा करके दस हजार संशप्तक रथी तथा बहुत-से अस्त्रवेत्ता त्रिगर्तदेशीय शूरवीर जिस ओर अर्जुन थे, उसी जा रहे थे। भरतनंदन आपकी सेना में एक लाख से अधिक हाथी थे। एक-एक हाथी के साथ सौ-सौ रथ थे और एक-एक रथ के साथ सौ-सौ घोड़े थे। प्रत्येक घोडे के पीछे दस-दस धनुर्धर और प्रत्येक धनुर्धर-के साथ सौ-सौ पैदल सैनिक नियुक्त किये गये थे, जो ढाल-तलवार लिये रहते थे। भरतनंदन! इस प्रकार भीष्म जी ने आपकी सेनाओं का व्यूह रचा था। शांतनुनंदन सेनापति भीष्म प्रत्येक दिन मानुष, दैव, गन्धर्व और आसुर प्रणालीके अनुसार व्यूह-रचना करके सेना के अग्रभाग में स्थित होते थे। भीष्म द्वारा रचित कौरव-सेना का व्यूह महारथियों के समुदाय से सम्पन्न हो समुद्र के समान गर्जना करता था। युद्ध में उसका मुख पश्चिम की ओर था। कौरव सेना पश्चिम की ओर बढ रही थी जबकि पांडव सेना पूर्व की ओर बढने की चेष्टा कर रही थी
http://internationalgitamahotsav.in/quiz
Gita Quiz में आज का प्रश्न है
महाभारत युद्ध में कौरवों और पांडवों की सेना रणक्षेत्र में एक दूसरे के सामने खडी थी रणक्षेत्र में पांडवों की सेना का मुख किस दिशा की ओर था ?
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संजय धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का हाल सुनाता है
संजय पांडवों के व्यूह एवं युद्धभूमि में पांडव सेना के आगे बढ़ने का वर्णन करते हुए कहते हैं कि- ' भीम उस व्यूह में सबसे आगे है उस वज्र व्यूह का मुख सब ओर से खुला है।'
दोनो सेनाओं की स्थिति तथा कौरव सेना का अभियान धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! सूर्योदय के समय किस पक्ष के योद्धा युद्ध की इच्छा से अधिक हर्ष का अनुभव करते हुए जान पड़ते थे? भीष्म के नेतृत्व में निकट आये हुए मेरे कौरव सैनिक अथवा भीमसेन की अध्यक्षता में आने वाले पाण्डव सैनिक! उस समय कौन अधिक प्रसन्न थे। चन्द्रमा, सूर्य और वायु किनके प्रतिकूल थे? किनकी सेना की ओर देखकर हिंसक जंतु भयंकर शब्द करते थे? ये सब बातें तुम मुझे ठीक-ठीक बताओ।
संजय बोले- दोनो ओर की सेनाएं समान रूप से आगे बढ़ रही थी। दोनों ओर के व्यूह में खड़े हुए सैनिक हर्ष से उल्लसित थे। दोनों ही सेनाएं वनश्रेणियों के समान आश्चर्यरूप प्रतीत होती थीं और दोनों ही हाथी, रथ एवं घोड़ों से भरी हुई थीं। दोनों ओर की सेनाएं विशाल, भयंकर और दु:सह थीं, मानो विधाता ने दोनों सेनाओं को स्वर्ग की प्राप्ति के लिये ही रचा था। दोनों में ही सत्पुरुष भरे हुए थे। आपके पुत्र कौरवों का मुख पश्चिम दिशा की ओर था और कुंती के पुत्र उनसे युद्ध करने के लिये पूर्वाभिमुख खड़े थे। कौरव सेना दैत्यराज की सेना के समान जान पड़ती थी और पाण्डव-वाहिनी देवराज इन्द्र की सेना के तुल्य प्रतीत होती थी। पांडव सेना के पीछे की ओर से हवा चल रही थी और आपके पुत्रों की ओर देखकर हिसंक जंतु बोल रहे थे। आपके पुत्र की सेना में जो हाथी थे, वे पाण्डव पक्ष के गजराजों के मदों की तीव्र गन्ध नहीं सहन कर पाते थे। दुर्योधन कमल के समान कांति वाले मदस्त्रावी गजराज पर बैठकर कौरव सेना के मध्यभाग में खड़ा था। उसके हाथी पर सोने का हौदा कसा हुआ था और पीठ पर सोने की जाली बिछी हुई थी। उस समय बंदी ओर मागधजन उसकी स्तुति कर रहे थे। उसके मस्तक पर चन्द्रमा के समान कांतिमान श्वेत छत्र तना हुआ था ओर कण्ठ में सोने की माला सुशोभित हो रही थी। हमारी सम्पूर्ण सेना के आगे पितामह भीष्म थे। वे श्वेत शैल के समान प्रकाशित होने वाले श्वेत घोड़ों और श्वेत ध्वज से सुशोभित हो रहे थे। महान् धनुर्धर और महामना कृपाचार्य, शक, किरात, यवन तथा पल्लव सैनिकों के साथ कौरवसेना के बांये भाग में होकर चल रहे थे। या तो हम अर्जुन पर विजय प्राप्त करेंगे अथवा हमारी मृत्यु हो जायगी’ ऐसी प्रतिज्ञा करके दस हजार संशप्तक रथी तथा बहुत-से अस्त्रवेत्ता त्रिगर्तदेशीय शूरवीर जिस ओर अर्जुन थे, उसी जा रहे थे। भरतनंदन आपकी सेना में एक लाख से अधिक हाथी थे। एक-एक हाथी के साथ सौ-सौ रथ थे और एक-एक रथ के साथ सौ-सौ घोड़े थे। प्रत्येक घोडे के पीछे दस-दस धनुर्धर और प्रत्येक धनुर्धर-के साथ सौ-सौ पैदल सैनिक नियुक्त किये गये थे, जो ढाल-तलवार लिये रहते थे। भरतनंदन! इस प्रकार भीष्म जी ने आपकी सेनाओं का व्यूह रचा था। शांतनुनंदन सेनापति भीष्म प्रत्येक दिन मानुष, दैव, गन्धर्व और आसुर प्रणालीके अनुसार व्यूह-रचना करके सेना के अग्रभाग में स्थित होते थे। भीष्म द्वारा रचित कौरव-सेना का व्यूह महारथियों के समुदाय से सम्पन्न हो समुद्र के समान गर्जना करता था। युद्ध में उसका मुख पश्चिम की ओर था। कौरव सेना पश्चिम की ओर बढ रही थी जबकि पांडव सेना पूर्व की ओर बढने की चेष्टा कर रही थी
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Nice information
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